बिकते खेत
मिटेते गाँव
उगती इमारते
फलते शहर
विकास है .....
मिटती लीक
बढती सड़क
मरते मजदुर
मजेमें हजुर
विकास है .....
सोमवार, 28 मार्च 2011
विकास है .....
प्रस्तुतकर्ता SanjeevKumar पर 10:16 pm
मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009
याद आई
आज उनकी याद आई
आंसू भर आए आंखों में
फिर सोच में पड़ गया मैं
हमें भी याद करेंगी संतानें हमारी
आज हम कुछ ऐसा कर रहे हैं
जिससे कायम रहेगी आज़ादी हमारी।
आज तो देश का यह हाल है
ख्याल नहीं किसी को आज़ादी का
आज हम एक ऐसे चोर हैं
जो लूटते हैं अपने ही घर को
आज अपना हाल देख
आंसू भर आए आंखों में
क्षमा चाहता हूं उनसे
जिन्होंने हमे आज़ादी दी।
क्षमा कर सकते हैं मुझको वो
क्षमा कर नहीं सकता मैं खुद को
आज़ादी के नशे में इतना खो गया था मैं
याद नहीं रही आज़ादी की परिभाशा मुझको।
प्रस्तुतकर्ता SanjeevKumar पर 5:26 am
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